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बिहार में एनडीए की सीट घटतौरी: तेजस्वी के लिए अवसर या चुनौती?

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मोहम्मद आलम

बिहार चुनावी अखाड़े में अबकी बार मुकाबला पहले से कहीं ज्यादा कड़ा दिख रहा है। भाजपा ने जब झारखंड में 65 का लक्ष्य रखा था तो तिहाई भी हासिल नहीं कर पाई। लोकसभा में 400 का दावा किया, लेकिन गाड़ी 242 पर अटक गई। अब बिहार में 225 सीटों का सपना दिखाने के बाद अमित शाह ने खुद लक्ष्य घटाकर 160 कर दिया। यह स्वीकारोक्ति है कि 80 से ज्यादा सीटों की जंग एनडीए के हाथ से फिसल चुकी है।

सर्वे का गणित: महागठबंधन आगे, एनडीए पिछड़ा

लोक पोल सर्वे में महागठबंधन 118–126 सीटों पर बढ़त दिखा रहा है, जबकि एनडीए 105–114 पर सिमटता नजर आ रहा है। अगर यह नतीजे हकीकत बने तो नीतीश कुमार की 20 साल की सत्ता यात्रा अपने अंतिम मोड़ पर पहुंच जाएगी।

तेजस्वी की मजबूती

भ्रष्टाचार और अपराध के मुद्दे पर लगातार हमला।

राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा से नैतिक सहारा।

लालू यादव का जातीय समीकरण—कुशवाहा से लेकर ईबीसी वोटरों में सेंध।


लालू खुद भी तेजस्वी की सभाओं में जोश भरते दिख रहे हैं, चाहे स्वास्थ्य की परवाह किए बिना ही क्यों न हो।

लेकिन राह आसान नहीं

परिवार की कलह—तेज प्रताप की नई पार्टी और रोहिणी की संभावित नाराज़गी।

महागठबंधन में सहयोगियों की खींचतान—कांग्रेस सीट शेयरिंग को लेकर दुविधा में और वीआईपी प्रमुख सहनी डिप्टी सीएम की गारंटी चाहते हैं।


निष्कर्ष

बिहार का 2025 का चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का सवाल नहीं, बल्कि एक राजनीतिक युगांत का संकेत हो सकता है।
नीतीश कुमार की पारी ढलान पर है और तेजस्वी की महत्वाकांक्षा अपने शिखर पर। सवाल यह है—क्या तेजस्वी यादव इस मौके को भुना पाएंगे या आंतरिक कलह और सहयोगियों की जिद उनके अरमानों पर पानी फेर देगी?

 हाइलाइट्स

शाह ने 225 से घटाकर 160 सीट का लक्ष्य तय किया।

सर्वे में महागठबंधन को बढ़त, एनडीए पिछड़ रहा।

लालू का जातीय समीकरण एनडीए की नींव हिला रहा।

परिवारिक मतभेद और सहयोगियों की जिद तेजस्वी के लिए सबसे बड़ी चुनौती।

2025: नीतीश के अंत और तेजस्वी के उदय की संभावित घड़ी।

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